SAMPLE QUESTION PAPER - 4
Hindi B (085)
Class X (2024-25)
निर्धारित समय: 3 hours अधिकतम अंक: 80
सामान्य निर्देश:
इस प्रश्नपत्र में चार खंड हैं - क, ख, ग और घ
खंड क में अपठित गदयांश से प्रश्न पूछे गए हैं, जिनके उत्तर दिए गए निर्देशों का पालन करते
हुए दीजिए।
खंड ख में व्यावहारिक व्याकरण से प्रश्न पूछे गए हैं, आंतरिक विकल्प भी दिए गए हैं।
खंड ग पाठ्यपुस्तक पर आधारित है, निर्देशानुसार उत्तर दीजिए।
खंड घ रचनात्मक लेखन पर आधारित है आंतरिक विकल्प भी दिए गए हैं।
प्रश्न पत्र में कु ल 16 प्रश्न हैं, सभी प्रश्न अनिवार्य है।
यथासंभव सभी खंडों के प्रश्नों के उत्तर क्रमशः लिखिए।
खंड क - अपठित बोध
1. निम्नलिखित गद्यांशों को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए - [7]
गीता के इस उपदेश की लोग प्रायः चर्चा करते हैं कि कर्म करें , फल की इच्छा न करें । यह
कहना तो सरल है पर पालन करना उतना सरल नहीं। कर्म के मार्ग पर आनन्दपूर्वक चलता
हुआ उत्साही मनुष्य यदि अन्तिम फल तक न भी पहुँचे, तो भी उसकी दशा कर्म न करने
वाले की अपेक्षा अधिकतर अवस्थाओं में अच्छी रहेगी, क्योंकि एक तो कर्म करते हुए उसका
जो जीवन बीता वह संतोष या आनन्द में बीता, उसके उपरांत फल के प्राप्त न होने पर भी
उसे यह पछतावा न रहा कि मैंने प्रयत्न नहीं किया। फल पहले से कोई बना-बनाया पदार्थ
नहीं होता। अनुकू ल प्रयत्न-कर्म के अनुसार, उसके एक-एक अंग की योजना होती है। किसी
मनुष्य के घर का कोई प्राणी बीमार है। वह वैद्यों के यहाँ से जब तक औषधि ला-लाकर रोगी
को देता जाता है तब तक उसके चित्त में जो संतोष रहता है, प्रत्येक नए उपचार के साथ जो
आनन्द का उन्मेष होता रहता है-यह उसे कदापि न प्राप्त होता , यदि वह रोता हुआ बैठा
रहता। प्रयत्न की अवस्था में उसके जीवन का जितना अंश संतोष, आशा और उत्साह में
बीता, अप्रयत्न की दशा में उतना ही अंश के वल शोक और दु:ख में कटता। इसके अतिरिक्त
रोगी के न अच्छे होने की दशा में भी वह आत्म-ग्लानि के उस कठोर दु:ख से बचा रहेगा जो
उसे जीवन भर यह सोच-सोच कर होता कि मैंने पूरा प्रयत्न नहीं किया।
कर्म में आनन्द अनुभव करने वालों का नाम ही कर्मण्य है। धर्म और उदारता के उच्च कर्मों
के विधान में ही एक ऐसा दिव्य आनन्द भरा रहता है कि कर्ता को वे कर्म ही फलस्वरूप
लगते हैं। अत्याचार का दमन और शमन करते हुए कर्म करने से चित्त में जो तुष्टि होती है।
वही लोकोपकारी कर्मवीर का सच्चा सुख है।
, 1. गद्यांश में गीता के किस उपदेश की ओर संके त किया गया है? (1)
(क) फल पहले से कोई बना-बनाया पदार्थ नहीं होता
(ख) कहना तो सरल है पर पालन करना उतना सरल नहीं
(ग) फल के बारे में सोचें
(घ) कर्म करें फल की चिंता नहीं करें
2. “कर्मण्य' किसे कहा गया है? (1)
(क) फल के चिंतन में आनन्द का अनुभव करने वालों को
(ख) काम करने में आनन्द का अनुभव करने वालों को
(ग) काम न करने वालों को
(घ) अधिक सोचने वालों को
3. ____________ कर्म करते हुये चित्त में संतोष का अनुभव ही कर्मवीर का सुख माना गया
है। (1)
(क) अत्याचार का दमन और शमन करने की भावना से
(ख) आत्म-ग्लानि की भावना से
(ग) संतोष या आनन्द की भावना से
(घ) उपचार की भावना से
4. कर्म करने वाले को फल न मिलने पर भी पछतावा क्यों नहीं होता? (2)
5. घर के बीमार सदस्य का उदाहरण क्यों दिया गया है? (2)
2. निम्नलिखित गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए। [7]
सत्संग से हमारा अभिप्राय उत्तम प्रकृ ति के व्यक्तियों की संगति से है। मानव मन में श्रेष्ठ एवं
गर्हित भावनाएँ मिश्रित रूप से विद्यमान रहती हैं। कु छ व्यक्ति सहज सुलभ सद्गुणों की
उपेक्षा करके कु मार्ग का अनुगमन करते हैं। उनकी संगति प्रत्येक के लिए भयंकर सिद्ध होती
है। वे न के वल अपना ही विनाश करते हैं, अपितु अपने साथ रहने तथा वार्तालाप करने वालों
के जीवन और चरित्र को भी पतन अथवा विनाश के गर्त की ओर उन्मुख करते हैं। अतः ऐसे
व्यक्तियों की संगति से सदैव बचना चाहिए। विश्व में प्रायः ऐसे मनुष्य ही अधिक हैं जो उत्कृ ष्ट
और निकृ ष्ट दोनों प्रकार की मनोवृत्तियों से युक्त होते हैं। उनका साथ यदि किसी के लिए
लाभप्रद नहीं होता तो हानिकारक भी नहीं होता। इसके अतिरिक्त तृतीय प्रकार के मनुष्य वे
हैं जो गर्हित भावनाओं का दमन करके के वल उत्कृ ष्ट गुणों का विकास करते हैं। ऐसे व्यक्ति
निश्चय ही महान प्रतिभा-सम्पन्न होते हैं। उनकी संगति प्रत्येक व्यक्ति में उत्कृ ष्ट गुणों का
संचार करती है। उन्हीं की संगति को सत्संग के नाम से पुकारा जाता है।
1. सत्संग से लेखक का क्या अभिप्राय है? (1)
(क) सहज सुलभ व्यक्तियों की संगति को
(ख) उत्तम प्रकृ ति के व्यक्तियों की संगति को
(ग) भावनाओं का दमन करने वाले की संगति को
(घ) उत्कृ ष्ट और निकृ ष्ट दोनों प्रकार के व्यक्तियों की संगति को
, 2. 'सत्संग' शब्द का संधि-विच्छे द करिए। (1)
(क) सत् + संग
(ख) सद + संग
(ग) सच + संग
(घ) सत्य + संग
3. इस गद्यांश के अनुसार दो प्रकार की मनोवृत्तियाँ कौन सी हैं?(1)
(क) लाभदायक और हानिकारक
(ख) उत्तम और निम्नतम
(ग) उत्कृ ष्ट और निकृ ष्ट
(घ) अच्छी और बुरी
4. कु मार्ग का अनुगमन करने वालों की संगति भयंकर क्यों सिद्ध होती है? (2)
5. 'महान प्रतिभा सम्पन्न' व्यक्ति किसे कह सकते हैं? (2)
खंड ख - व्यावहारिक व्याकरण
3. निम्नलिखित वाक्यों में से किन्हीं चार प्रश्नों के उत्तर दीजिए। [4]
i. वह गिरता-पड़ता वहाँ पहुँच जाता। इस वाक्य में क्रिया-विशेषण पदबंध क्या है।
ii. तताँरा एक नेक और मददगार युवक था। रे खांकित पदबंध का नाम लिखिए।
iii. दू सरों की सहायता करने वाले आप महान हैं। सर्वनाम पदबंध छाँटिये।
iv. मास्टर प्रीतम चंद का दुबला-पतला गठीला शरीर था। रे खांकित पदबंध का नाम
लिखिए।
v. बालक ने पुस्तक पढ़ी होगी। वाक्य में क्रिया पदबंध कौन सा है
4. नीचे लिखें वाक्यों में से किन्हीं चार वाक्यों का निर्देशानुसार रचना के आधार पर वाक्य [4]
रूपांतरण कीजिए-
i. अधिक पढ़ने पर अधिक लाभ होगा। (मिश्र वाक्य में)
ii. अंगीठी सुलगाई उस पर चायदानी रखी। (संयुक्त वाक्य में)
iii. कृ पण को उदारता अधिक शोभती है। (मिश्र वाक्य में)
iv. रात्रि के आठ बजते ही मैंने पढ़ना बंद कर दिया। (संयुक्त वाक्य में)
v. काका को बंधनमुक्त करके मुँह से कपड़े निकाले गए। (संयुक्त वाक्य में)
5. निर्देशानुसार किन्हीं चार प्रश्नों का उत्तर दीजिए और उपयुक्त समास का नाम भी लिखिए। [4]
i. यथार्थ (विग्रह कीजिए)
ii. शांतिप्रिय (विग्रह कीजिए)
iii. विद्या रूपी धन (समस्त पद लिखिए)
iv. चंद्र है शिखर पर जिसके अर्थात् शिव (समस्त पद लिखिए)
Hindi B (085)
Class X (2024-25)
निर्धारित समय: 3 hours अधिकतम अंक: 80
सामान्य निर्देश:
इस प्रश्नपत्र में चार खंड हैं - क, ख, ग और घ
खंड क में अपठित गदयांश से प्रश्न पूछे गए हैं, जिनके उत्तर दिए गए निर्देशों का पालन करते
हुए दीजिए।
खंड ख में व्यावहारिक व्याकरण से प्रश्न पूछे गए हैं, आंतरिक विकल्प भी दिए गए हैं।
खंड ग पाठ्यपुस्तक पर आधारित है, निर्देशानुसार उत्तर दीजिए।
खंड घ रचनात्मक लेखन पर आधारित है आंतरिक विकल्प भी दिए गए हैं।
प्रश्न पत्र में कु ल 16 प्रश्न हैं, सभी प्रश्न अनिवार्य है।
यथासंभव सभी खंडों के प्रश्नों के उत्तर क्रमशः लिखिए।
खंड क - अपठित बोध
1. निम्नलिखित गद्यांशों को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए - [7]
गीता के इस उपदेश की लोग प्रायः चर्चा करते हैं कि कर्म करें , फल की इच्छा न करें । यह
कहना तो सरल है पर पालन करना उतना सरल नहीं। कर्म के मार्ग पर आनन्दपूर्वक चलता
हुआ उत्साही मनुष्य यदि अन्तिम फल तक न भी पहुँचे, तो भी उसकी दशा कर्म न करने
वाले की अपेक्षा अधिकतर अवस्थाओं में अच्छी रहेगी, क्योंकि एक तो कर्म करते हुए उसका
जो जीवन बीता वह संतोष या आनन्द में बीता, उसके उपरांत फल के प्राप्त न होने पर भी
उसे यह पछतावा न रहा कि मैंने प्रयत्न नहीं किया। फल पहले से कोई बना-बनाया पदार्थ
नहीं होता। अनुकू ल प्रयत्न-कर्म के अनुसार, उसके एक-एक अंग की योजना होती है। किसी
मनुष्य के घर का कोई प्राणी बीमार है। वह वैद्यों के यहाँ से जब तक औषधि ला-लाकर रोगी
को देता जाता है तब तक उसके चित्त में जो संतोष रहता है, प्रत्येक नए उपचार के साथ जो
आनन्द का उन्मेष होता रहता है-यह उसे कदापि न प्राप्त होता , यदि वह रोता हुआ बैठा
रहता। प्रयत्न की अवस्था में उसके जीवन का जितना अंश संतोष, आशा और उत्साह में
बीता, अप्रयत्न की दशा में उतना ही अंश के वल शोक और दु:ख में कटता। इसके अतिरिक्त
रोगी के न अच्छे होने की दशा में भी वह आत्म-ग्लानि के उस कठोर दु:ख से बचा रहेगा जो
उसे जीवन भर यह सोच-सोच कर होता कि मैंने पूरा प्रयत्न नहीं किया।
कर्म में आनन्द अनुभव करने वालों का नाम ही कर्मण्य है। धर्म और उदारता के उच्च कर्मों
के विधान में ही एक ऐसा दिव्य आनन्द भरा रहता है कि कर्ता को वे कर्म ही फलस्वरूप
लगते हैं। अत्याचार का दमन और शमन करते हुए कर्म करने से चित्त में जो तुष्टि होती है।
वही लोकोपकारी कर्मवीर का सच्चा सुख है।
, 1. गद्यांश में गीता के किस उपदेश की ओर संके त किया गया है? (1)
(क) फल पहले से कोई बना-बनाया पदार्थ नहीं होता
(ख) कहना तो सरल है पर पालन करना उतना सरल नहीं
(ग) फल के बारे में सोचें
(घ) कर्म करें फल की चिंता नहीं करें
2. “कर्मण्य' किसे कहा गया है? (1)
(क) फल के चिंतन में आनन्द का अनुभव करने वालों को
(ख) काम करने में आनन्द का अनुभव करने वालों को
(ग) काम न करने वालों को
(घ) अधिक सोचने वालों को
3. ____________ कर्म करते हुये चित्त में संतोष का अनुभव ही कर्मवीर का सुख माना गया
है। (1)
(क) अत्याचार का दमन और शमन करने की भावना से
(ख) आत्म-ग्लानि की भावना से
(ग) संतोष या आनन्द की भावना से
(घ) उपचार की भावना से
4. कर्म करने वाले को फल न मिलने पर भी पछतावा क्यों नहीं होता? (2)
5. घर के बीमार सदस्य का उदाहरण क्यों दिया गया है? (2)
2. निम्नलिखित गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए। [7]
सत्संग से हमारा अभिप्राय उत्तम प्रकृ ति के व्यक्तियों की संगति से है। मानव मन में श्रेष्ठ एवं
गर्हित भावनाएँ मिश्रित रूप से विद्यमान रहती हैं। कु छ व्यक्ति सहज सुलभ सद्गुणों की
उपेक्षा करके कु मार्ग का अनुगमन करते हैं। उनकी संगति प्रत्येक के लिए भयंकर सिद्ध होती
है। वे न के वल अपना ही विनाश करते हैं, अपितु अपने साथ रहने तथा वार्तालाप करने वालों
के जीवन और चरित्र को भी पतन अथवा विनाश के गर्त की ओर उन्मुख करते हैं। अतः ऐसे
व्यक्तियों की संगति से सदैव बचना चाहिए। विश्व में प्रायः ऐसे मनुष्य ही अधिक हैं जो उत्कृ ष्ट
और निकृ ष्ट दोनों प्रकार की मनोवृत्तियों से युक्त होते हैं। उनका साथ यदि किसी के लिए
लाभप्रद नहीं होता तो हानिकारक भी नहीं होता। इसके अतिरिक्त तृतीय प्रकार के मनुष्य वे
हैं जो गर्हित भावनाओं का दमन करके के वल उत्कृ ष्ट गुणों का विकास करते हैं। ऐसे व्यक्ति
निश्चय ही महान प्रतिभा-सम्पन्न होते हैं। उनकी संगति प्रत्येक व्यक्ति में उत्कृ ष्ट गुणों का
संचार करती है। उन्हीं की संगति को सत्संग के नाम से पुकारा जाता है।
1. सत्संग से लेखक का क्या अभिप्राय है? (1)
(क) सहज सुलभ व्यक्तियों की संगति को
(ख) उत्तम प्रकृ ति के व्यक्तियों की संगति को
(ग) भावनाओं का दमन करने वाले की संगति को
(घ) उत्कृ ष्ट और निकृ ष्ट दोनों प्रकार के व्यक्तियों की संगति को
, 2. 'सत्संग' शब्द का संधि-विच्छे द करिए। (1)
(क) सत् + संग
(ख) सद + संग
(ग) सच + संग
(घ) सत्य + संग
3. इस गद्यांश के अनुसार दो प्रकार की मनोवृत्तियाँ कौन सी हैं?(1)
(क) लाभदायक और हानिकारक
(ख) उत्तम और निम्नतम
(ग) उत्कृ ष्ट और निकृ ष्ट
(घ) अच्छी और बुरी
4. कु मार्ग का अनुगमन करने वालों की संगति भयंकर क्यों सिद्ध होती है? (2)
5. 'महान प्रतिभा सम्पन्न' व्यक्ति किसे कह सकते हैं? (2)
खंड ख - व्यावहारिक व्याकरण
3. निम्नलिखित वाक्यों में से किन्हीं चार प्रश्नों के उत्तर दीजिए। [4]
i. वह गिरता-पड़ता वहाँ पहुँच जाता। इस वाक्य में क्रिया-विशेषण पदबंध क्या है।
ii. तताँरा एक नेक और मददगार युवक था। रे खांकित पदबंध का नाम लिखिए।
iii. दू सरों की सहायता करने वाले आप महान हैं। सर्वनाम पदबंध छाँटिये।
iv. मास्टर प्रीतम चंद का दुबला-पतला गठीला शरीर था। रे खांकित पदबंध का नाम
लिखिए।
v. बालक ने पुस्तक पढ़ी होगी। वाक्य में क्रिया पदबंध कौन सा है
4. नीचे लिखें वाक्यों में से किन्हीं चार वाक्यों का निर्देशानुसार रचना के आधार पर वाक्य [4]
रूपांतरण कीजिए-
i. अधिक पढ़ने पर अधिक लाभ होगा। (मिश्र वाक्य में)
ii. अंगीठी सुलगाई उस पर चायदानी रखी। (संयुक्त वाक्य में)
iii. कृ पण को उदारता अधिक शोभती है। (मिश्र वाक्य में)
iv. रात्रि के आठ बजते ही मैंने पढ़ना बंद कर दिया। (संयुक्त वाक्य में)
v. काका को बंधनमुक्त करके मुँह से कपड़े निकाले गए। (संयुक्त वाक्य में)
5. निर्देशानुसार किन्हीं चार प्रश्नों का उत्तर दीजिए और उपयुक्त समास का नाम भी लिखिए। [4]
i. यथार्थ (विग्रह कीजिए)
ii. शांतिप्रिय (विग्रह कीजिए)
iii. विद्या रूपी धन (समस्त पद लिखिए)
iv. चंद्र है शिखर पर जिसके अर्थात् शिव (समस्त पद लिखिए)